सोमवार, 19 सितंबर 2016

विज्ञान जगत
कैसे उड़ती है पतंग
नरेन्द्र देवांगन

वर्ष १७५२ में बेजामिन फ्रेंकलिन ने अपना विश्वविद्यालय ऐतिहासिक पतंग प्रयोग किया था जिसने आकाश में चमकने वाली रोशनी यानी तड़ित में विद्युत आवेश होने की पृष्टि की थी । 
इस प्रयोग को करने के लिए फ्रेंकलिन ने घर में पतंग बना कर उसकी डोरी में एक धातु की चाबी बांध दी थी और आंधी तूफान में बिजली कड़कने की समय उसे उड़ाया था । पतंग और उसकी गीली डोर से होते हुए विद्युत आवेश ने चाबी पर पहुंच कर चिगारी उत्पन्न की थी जिससे सिद्ध हुआ था कि आकाश में चमकने वाली बिजली में विद्युत आवेश होता है ।
सन् १८४७ में एक पतंग की सहायता से संयुक्त राज्य और कनाड़ा के बीच नियाग्रा नदी पर एक केबल खींची गई थी । यह केबल नदी पर बनाए गए पहले झूला पुल का एक भाग थी । 
वायुयानों के विकास में भी पतंगों का महत्वपूर्ण योगदान रहा   है । ऑस्ट्रेलिया के लारेस हार्ग्रेव द्वारा वर्ष १८९३ में बनाई गई बॉक्स के आकार की पतंग ने उड़ने की वस्तुए बनाने की तरीका ही बदल दिया    था । वायुयान के आविष्कारक राइट बंधुआें ने अपने वायुयान उड़ाने के प्रयोग में विग वार्पिग के सभी परीक्षण बॉक्सनुमा पतंगों पर ही किए थे, जिनके आधार पर उन्हें वर्ष १९०३ में पहला वायुयान बनाने में सफलता मिली थी । 
टेलीफोन के आविष्कारक ग्राहम बेल ने भी पतंगे बनाई । उन्हें पूरी आशा थी कि पतंगे लोगों से भरे वायुयान को उड़ने में भी सक्षम  होगी । उन्होनें बॉक्स-पतंगा को जोड़कर बड़ा रूप दिया ताकि वे मनुष्यों को आकाश की सैर करा सके । 
वायुमण्डल मे हवा के तापमान, दबाव, आर्द्रता, वेग एवं दिश के अध्ययन के लिए पहले पतंग का ही प्रयोग किया जाता था । वर्ष १८९८ से १९३३ तक संयुक्त राज्य मौसम ब्यूरो ने मौसम के अध्ययन के लिए पतंग केन्द्र बनाए हुए थे जहां से मौसम नापने की युक्तियों से लैंस बॉक्स पतंगें उड़ाकर मौसम संबंधी अध्ययन किए जाते थे । आजकल इसके लिए विज्ञान और प्रौघोगिक के अभूतपूर्व विकास से नई-नई तकनीक आ गई है । 
किसी पतंग की हवा में उड़ने की क्षमता उसकी बनावट और उससे बंधी कन्नी की स्थिति पर निर्भर करती है । आम तौर पर उड़ाई जाने वाली साधारण आकार की पतंग तब उड़ती है जब उसकी कवर्ड साइड यानी निचली सतह की ओर से हवा का दबाव पड़ता है । कन्नी की ऊपर वाली डोरी पंतग को हवा में खिंचती है जिससे पतंग को ऊंचाउड़ने के लिए पतंग के नीचे वाले हिस्से में हवा के सापेक्ष एक कोण बन जाता है । पतंग के इस कोण को एंगल ऑफ अटैक कहते है । 
पतंग की बनावट और एंगल ऑफ अटैक यदि दोनों बिल्कुल सही हो तो हवा पतंग की कन्नी वाली सतह पर तेजी से टकरा कर पीछे वाली सतह पर भी कुछ दबाव उत्पन्न   करेगी । पतंग के सामने और पीछे वाली सतह के बीच उत्पन्न वायु के बाद का अंतर पतंग को ऊंचा उठाता है । इसे लिफ्ट भी कहते है । पतंग की निचली सतह पर लगने वाले दबाव से पतंग आगे बढ़ती है - इसे थ्रस्ट कहते है । सामने वाली सतह पर पड़ने वाले वायु के दबाव को ड्रेग कहते हैं । इस प्रकार पतंग को हवा में बनाए रखने के लिए लिफ्ट ड्रेग थ्रस्ट डोरी के खिंचाव और गुरूत्व बल के बीच सामजस्य होना जरूरी है । 
कोई भी पतंग अपनी सद्दी से बंधी कन्नी या ब्रिडल की सहायता से उड़ती है । इस कन्नी में दो या दो से अधिक डोरिया होती है जिन्हें लग्स कहते हैं जो पतंग को डोरी से जोड़ती है । कन्नियां के पतंग से जुड़ने के स्थान को कर्षण बिन्दु कहते हैं । ये कर्षण बिन्दु ही एंगल ऑफ अटैक का निर्धारण करते है और कन्निया उड़ती हुई पतंग की आकृति बनाए रखने के लिए पतंग पर दबाव बनाए रखती है । पतंग को हवा में अधिक ऊंचाई पर उड़ाने में पतंग की दुम, झालर आदि सहायक होते हैं । 
पहले तो पतंगो का उपयोग दूरस्थ स्थानों को संकेत देने, लेम्पों व झंडो को ले जाने में किया जाता था । नौसेना द्वारा दुश्मन के ठिकानों पर टारपीडो को तैराने में, आकाश मार्ग से पतंग पर कैमरा लगाकर चित्र खींचने तथा मनुष्य को आकाश में उड़ने के लिए भी पतंगों का प्रयोग किया जाता था । परन्तु आज पतंगबाजी सिर्फ मनोरंजन के लिए की जाती है । 

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