सोमवार, 19 सितंबर 2016

स्वास्थ्य
अनाज मेंसूक्ष्म पोषक तत्व 
डॉ. डी. बालसुब्रमण्यन

महात्मा गांधी हमेशा इस बात की वकालत करते थे कि पॉलिश किए हुए चावल की बजाय हाथ से कुटे चावल और हाथ की चक्की में पिसे गेहूं का आटा खाना चाहिए । हम तो अनाज को मशीनों के जरिए पॉलिश करते हैं ताकि उन्हें लंबे समय तक संग्रहित रख सकें । 
लेकिन पॉलिशिंग के दौरान चोकर (दाने का कवच) हट जाता  है । चोकर में फलभित्ती और एल्यूरॉन परत होती है जिसमें कई जरूरी पोषक तत्व होते हैं । तो गांधीजी की बात सही थी, मशीन-पॉलिश अनाज में इस तरह के सूक्ष्म पोषक तत्व नहींहोते है । 
यह बात जिस रूप में सामने आती है उसे आजकल हिडन हंगर (अदृश्य भूख) कहते हैं । हो सकता है कि आप रोज भरपेट भोजन करते हो लेकिन फिर भी संभव है कि उसमें शरीर की वृद्धि और स्वास्थ्य के लिए जरूरी ये सूक्ष्म पोषक तत्व नदारद   हो । 
राष्ट्र संघ संस्थाआें का अनुमान है कि यह अदृश्य भूख पूरे विश्व में हर तीन में से एक बच्च्े को प्रभावित करती है, जिसकी वजह से शारीरिक वृद्धि और मस्तिष्क के विकास में कमी आती है । बच्च्े विटामिन ए के अभाव के चलते दृष्टि संबंधी परेशानियों से ग्रस्त होते हैं । भोजन में आयरन का अभाव रक्त संबंधी विकारों की ओर ले जाता है जबकि जिंक की कमी के कारण शारीरिक विकास अवरूद्ध होता है और डायरिया, बालों का झड़ना, भूख की कमी और दूसरी स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा होती है । 
१९७० के दशक में भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के डॉ. रामलिंगास्वामी द्वारा भारत में एक कार्यक्रम शुरू किया गया था । बच्चें को हर छ: माह में विटाामिन ए की बड़ी मात्रा में खुराक दिए जाने से यह पाया गया कि रतौंधी जैसे रोगों से उन्हें बाहर निकालने में मदद मिली । इसका कारण यह है कि विटामिन ए से बना एक पदार्थ आंख के रेटिना के लिए जरूरी है । यह आंख मेंप्रकाश को विघुत संकेतों में परिवर्तित कर देता है जिसकी वजह से देखने की प्रक्रियामें सहायता मिलती है । 
डॉ. महाराज किशन भान ने जो पहले अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में थे और नई दिल्ली में भारत सरकार के जैव प्रौघोगिकी विभाग के सचिव थे ने एक नमक मिश्रण तैयार किया था । इस मिश्रण में जिंक और आयरन जैसे कुछ सूक्ष्म पोषक तत्व मिलाए गए थे । यह मिश्रण डायरिया और डीहाइड्रेशन (निर्जलीकरण) से पीड़ित बच्चें को दिया गया था । इसके परिणाम काफी सकारात्मक रहे । सूक्ष्म पोषक पूरक पदार्थो, विशेष रूप से जिंक, बच्चें में दस्त में बहुत फायदेमंद पाया गया  था ।  
शरीर के लिए जिंक इतना महत्वपूर्ण क्यों है ? इसलिए कि हमारे शरीर में ३०० से ज्यादा एन्जाइम अपने काम में जिंक का इस्तेमाल एक आवश्यक घटक के रूप में करते हैं । जिंक हमारे प्रतिरक्षा तंत्र को मदद करने में, डीएनए के संश्लेषण व विघटन में, घावों को भरने में और कई अन्य गतिविधियों में जरूरी है । जिंक की बहुत अधिक मात्रा की जरूरत नहीं होती है । ७० किलोग्राम भार वाले मनुष्य के शरीर में जिंक की मात्रा २ से ३ ग्राम होती है । लेकिन यदि इसकी सामान्य से कम मात्रा हो जाती है तो शारीरिक विकास अवरूद्ध हो जाता है, डायरिया होता है, आंख और त्वचा में घाव दिखाई देने लगते हैं, और भूख मर जाती है । ऐसी स्थिति में रोज जिंक की कुछ मात्रा लेना आवश्यक हो जाता है ।
हैदराबाद के चावल अनुसंधान संस्थान के डॉ. वेमुरी रविन्द्र बाबु के नेतृत्व में कार्यरत समूह ने पूरे १२ सालों की मेहनत के बाद यह करने में सफलता हासिल की है । इस समूह ने एक विशिष्ट प्रकार का धान विकसित किया है जो जिंक में समृद्ध है । इसे डीआरआर ४५ (आईईटी२३८३२) नाम दिया गया   है । इसमें २२.१८ हिस्सा प्रति लाख तक जिंक होता है (जो अब तक जारी किस्मों में उच्च्तम मात्रा है)। यह कीटों के द्वारा होने वाले लीफ ब्लास्ट रोग का थोड़ा प्रतिरोधी भी पाया गया है । 
उच्च् जिंक युक्त डीआरआर धान ४५ का विकास बहुत आसान काम नहीं था । २००४ से शुरू करके, भारत के विभिन्न हिस्सों से चावल की कई हजार किस्मों में जिंक की मात्रा जांची गई थी । इनमें से कुल १६८ किस्मों को चुना गया जिनमें थोड़ी संभावना दिखाई दी थी । उनमें लौह और जिंक की मात्रा की जांच की  गई । उनकी कड़ी  स्क्रीनींग करने के बाद उनका संकरण अधिक पैदावार वाली किस्मों के साथ कराया गया । अंत में यह किस्म आईईटी २३८३२ या डीआरआर ४५ मिली । वास्तव में यह एक लंबी दौड़ रही है और बायोफोर्टिफिकेशन (इसका अर्थ है कि समृद्धता नैसर्गिक है, भान विधि के समान बाहर से नहीं जोड़ी गई है) का यह प्रयास सफल रहा । गौरतलब है कि इस किस्म का जिंक व दूसरे खनिज पदार्थ पॉलिशिंग के दौरान खत्म नहीं होते । इस प्रकार इस चावल को लंबे समय के लिए रखा और इस्तेमाल किया जा सकता है और परम्परागत चावल की तरह ही यह स्वादिष्ट भी है । 
यह भी ध्यान देने की बात है कि यह जीएम (जेनेटक रूप से परिवर्तित) फसल नहींहै । तो यह किसी विवाद के घेरे मेंभी नहीं है । डीआरआर ४५ में एक अतिरिक्त लाभ है कि इसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम है (परंपरागत धान के ७५ के मुकाबले ५१) । तो यह मधुमेह रोगियो के लिए भी अच्छा है । डॉ. बाबू ने मुझे बताया कि कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स के चलते यह पाचन मेंथोड़ा ज्यादा समय लेता है और आपको देर तक भूख महसूस नहीं होती है । उनका अगला कदम भारतीय  कृषि अनुसंधान परिषद बायोफोर्टिफिकेशन के अंतर्गत इसी तरह की जिंक और दूसरे खनिज युक्त गेहूं, मक्का और बाजरा की किस्में विकसित करना है ।

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