सोमवार, 17 अक्तूबर 2016

 पर्यावरण परिक्रमा
    दुनिया की ९० फीसदी आबादी जहरीली हवा में सांस ले रही है । यानी हर १० में से ९ लोग प्रदूषित वायु में रह रहा है । हर साल करीब ६० लाख मौतें प्रदूषित हवा से हो रही है । भारत, चीन, मलेशिया और वियतनाम समेत दक्षिणपूर्व एशिया और पश्चिमी प्रशांत देश  सबसे ज्यादा प्रभावित है । जल्द ही कड़े फैसले नहीं लिए तो हालात और बदतर हो जाएंगे । ये जानकारी डब्ल्यूएचओ ने अपनी ताजा रिपोर्ट में दी है जो उन्होनें पिछले दिनों जारी की है ।
    डब्ल्यूएचओ के सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण विभाग की प्रमुख मारिया नियरा का कहना है कि हालिया आंकड़े डरावने है । शहरों की हवा बेहद ही प्रदूषित है । हालांकि ग्रामीण इलाकों की भी हालत अच्छी नहीं है । संगठन ने दुनियाभर में १०३ शहरों के ३हजार अलग-अलग हिस्सों में हवा की गुणवत्ता की जांच की । २००८ से २०१५ के बीच किए गए इस सर्वे में ये जानकारी सामने आई कि इन जगहों में प्रदूषित हवा के लिए जिम्मेदार कारण डब्ल्यूएचओ  द्वारा तय सीमा से अधिक थे । जानकारों का कहना है कि जिस तरह से दुनिया के देश विकास के एजेडे को आगे बढ़ा रहे हैं, उसका सीधा असर पर्यावरण पर हो रहा है ।
    रिपोर्ट में बताया गया वायु प्रदूषण के चलते हर साल करीब ६० लाख लोगों की मौत होती है । सालाना ३० लाख मौतें बाहरी वायु प्रदूषण से हो रही हैं । हालांकि भीतरी वायु प्रदूषण भी कम घातक नहीं है खासकर गरीब देशों में जहां घरों में लकड़ी को जलाने में खाना पकाया जाता है । डब्ल्यूएचओ  का कहना है कि वायु प्रदूषण से करीब ९० फीसदी मौतें कम और मध्यम आय वाले देशों में होती है । भारत, चीन, मलेशिया और वियतनाम समेत दक्षिणपूर्व एशिया और पश्चिमी प्रशांत देश ज्यादा प्रभावित है ।
    डब्ल्यूएचओ  की इस रिपोर्ट  में १.४० करोड़ से ज्यादा जनसंख्या वाले शहरों में दिल्ली सबसे प्रदूषित  थी । इसके बाद काहिरा और ढाका का नम्बर था । रिपोर्ट के अनुसार वायु प्रदूषण की प्रमुख वजह परिवहन बताई गई थी । इसके अनुसार, वाहन संख्या कम कर, साइक्लिंग, पैदल चलने और सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देकर हवा की गुणवत्ता सुधारी जा सकती है । इमारतों को ठंडा और गरम करने वाले उपकरण भी जिम्मेदार है ।
अवैध खनन को लेकर कलेक्टरों को नोटिस
    पिछले दिनों राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण में जस्टिस दलीप सिंह एवं एसएस गरब्याल की भोपाल बेंच ने विनायक परिहार की याचिका पर सुनवाई करते हुए आठ जिलों के कलेक्टरों को आदेश जारी करते हुये नर्मदा नदी में प्रतिबंध की अवधि में हो रहे अवैध रेत खान पर विस्तृत रिपोर्ट मांगी है ।
    याचिकाकर्ता विनायक परिहार ने न्यायाधिकरण द्वारा गठित  एसआईटी की रिपोर्ट के आधार पर माइनिंग कार्पोरेशन के अधिपत्य वाली नर्मदा नदी की रेत खदानों में बिना पर्यावरण स्वीकृति के नदी के अंदर हो रहे नियम विरूद्ध खनन के प्रमाण प्रस्तुत किए । इसे स्वीकार करते हुये एनजीटी ने नरसिंहपुर, होशंगाबाद, हरदा, सीहोर, खरगोन, धार, अलीराजपुर और बड़वानी के जिला प्रशासन से नर्मदा नदी में प्रतिबन्ध के बाद भी पानी के अंदर नाव से हो रहे खनन पर की गई कार्यवाही का पूरा विवरण एक सप्तह के अंदर मांगा है ।
    न्यायाधिकरण ने सभी जिलों की तहसील/गांव अनुसार उपयोग होने वाली समस्त नावों के संबंध में अनेक मालिक और चलाने वाले का विवरण और उनको जिला प्रशासन से नाव उपयोग की अनुमति की जानकारी भी मांगी है । बिना अनुमति के चलने वाली नावों को तत्काल जप्त् करने के निर्देश भी सभी जिलों को दिये गए है । इस संबंध में सभी जिला कलेक्टरों को राजस्व अधिकारियों का एक दल बनाने के भी आदेश दिए गए है ।
    इसमें एसडीएम, एसडीओपी, माइनिंग अधिकारी एवं संबंधित क्षेत्र के तहसीलदार को शामिल करने के निर्देश है । इस जांच दल को अवैध खनन और उसमें उपयोग होने वाले उपकरणों सहित जहां तहां जमा रेत के भण्डारों को भी जप्त् करने के आदेश दिये है । जल्दी ही रेत उत्खनन पर प्रतिबंध की अवधि में अवैध खनन, परिवहन व भंडारण आदि के प्रकरणों में जप्त् किए समस्त उपकरणों, नाव तथा रेत भंडारों को बिना एनजीटी की अनुमति के छोड़ने पर भी प्रतिबंध लगाया गया है । सरकारी अधिवक्ता सचिन वर्मा को सभी जिला कलेक्टरों को इस आदेश की प्रति भेजने को कहा गया है । न्यायाधिकरण की सुनवाई में याचिककर्ता के अधिवक्ता धर्मवीर शर्मा के अलावा माइनिंग कार्पोरेशन व सरकार की ओर से सचिन वर्मा, राज्य प्रदूषण नियंत्रण मण्डल से पारूल भदोरीया, सिया से पुष्पेन्द्र कौरव तथा केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण मण्डल से ओमशंकर श्रीवास्तव उपस्थित रहे ।
थाली मेंबचे खाने को बचाने के लिए बने कानून
    अकसर शादी, जन्म दिवस व अन्य आयोजनों के दौरान दी जाने वाली भोज पार्टी सहित होटलों में लोग भोजन प्लेट में छोड़ देते हैं, जिसे फेंक दिया जाता है । इसे बचाने के संबंध में सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है ।
    पिछलों दिनों इन्दौर के दो युवाआें द्वारा दायर इस याचिका में कुपोषण व भुखमरी के आंकड़े पेश करते हुए कहा है कि जब फ्रांस, इटली सहित अन्य देश फूड सैफ्टी पर कानून बना सकते हैं, तो हमारा देश क्यों नहीं ? याचिकाकर्ताआें ने गुहार लगाई है कि कोर्ट सरकार को इस बारे में कानून बनाने के निर्देश दे या खुद आवश्यक गाइड लाइन जारी करे ।
    यह याचिका इन्दौर के आकाश आर.शर्मा व प्रकाश राठौर ने दायर की है । इसमें बताया है कि फ्रांस व इटली में बने कानून में प्रावधान है । यदि किसी भी प्लेट में खाना छोड़ा या दुरूपयोग किया तो उस पर भारी जुर्माना लगाया जाता   है । हमारे देश को इस तरह के कानून की ज्यादा जरूरत इसलिए भी है क्योंकि विश्व की भुखमरी व कुपोषण मामले में भारत का हिस्सा लगभग एक तिहाई है । उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, विश्व में लगभग ७० लाख लोग कुपोषण व भुखमरी का शिकार है, जिनमें भारत के १९.४ लाख लोग शामिल है ।
    याचिका में कहा गया है कि हमारे देश में शादी व अन्य समाराहों पर होने वाले भोज में कई बार इतने अधिक व्यंजन होते हैं कि इसका बड़ा हिस्सा खराब होने में चला जाता है । चूंकि भोज में खाने के कितने आइटम रखे जाएंगे, इसे लेकर कोई गाइडलाईन या कानून नहीं है, इसके चलते लोग अपनी क्षमता अनुसार मनमाने तरीके से स्टाल्स लगवाते   है । इस कारण लोगों की प्लेट में खाने की बर्बादी होती है । इसी तरह तमाम होटल व रेस्टोरेंट में भी लोग काफी तादाद में झूठा छोड़ते हैं । यह बर्बाद होने वाला भोजन बचे तो देश के करोड़ों लोगों को भूखे मरने से बचाया जा सकता है ।
गंगाजल में रोग मिटाने की क्षमता
    हिन्दुस्तान के करोड़ों लोगों की आस्था का प्रतीक गंगा के पानी में रोगों से लड़ने की अद्भूत क्षमता है । सदियों से चली आ रही इस मान्यता को अब एक नए अध्ययन से भी बल मिला है । इस अध्ययन में कहा गया है कि गंगा में आज भी टीबी और न्यूमोनिया जैसी बीमारियों से लड़ने की क्षमता है ।
    चण्डीगढ़ के इंस्टीट्यूट ऑफ माइक्रोबियल टेक्रोलॉजी (इमटेक) के वैज्ञानिकों ने यह अध्ययन किया    है । वैज्ञानिकों ने पहली बार गंगा में रोगों को ठीक करने की क्षमता का पुख्ता सबूत भी अपने अध्ययन के साथ पेश किया है । उन्होनें अध्ययन में पाया कि गंगा के पानी में ऐसे नए किस्म के वायरस और बैक्टीरिया होते हैं, जो पानी में गंदगी करने वाले बैक्टीरिया को खा जाते हैं ।
    विज्ञान की दुनिया के लिए गंगा अरसे से अबूझ पहेली बनी हुई थी । हालांकि, कुछ शोधों में यह पहले भी कहा गया था कि गंगा में सड़न पैदा नहीं होने की खास गुण   है । इसका पानी कभी सड़ता नहीं   है । लोग इसका पानी बोतलें में वर्षो से लेकर रखते है ।
रूस की ओर खिसक रहा है क्रीमिया
    वर्ष २०१४ मेंरूस ने यूक्रेन पर हमला करके उसके मुख्य शहर क्रीमिया पर कब्जा कर लिया था । उसके बाद से ही यूक्रेन विभाजित हो गया और क्रीमिया शहर पर हमेशा-हमेशा के लिए रूस का कब्जा हो गया । अब आश्चर्यजनक खबर यह आई है कि क्रीमिया शहर धीरे-धीरे रूस की ओर खिसक रहा है और एक दिन ऐसा भी आएगा, जब वह पूरी तरह रूस में समाहित हो जाएगा।  हालांकि इसमें थोड़े बहुत नहीं, १५ लाख साल लगेंगे ।
    क्रीमिया के खिसकने का दावा रूस के ही वैज्ञानिकों ने किया है । रशियन सांइस एकेडमी के प्रमुख एलेक्जेडंर इपातोव कहते है क्रीमिया पर रूस का कब्जा है, लेकिन वास्तव में वह रूस की ओर खिसक रहा  है ।

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