शुक्रवार, 18 नवंबर 2016

वानिकी जगत
क्षतिपूर्ति वृक्षारोपण की सीमा का सवाल
जगदीश प्रसाद शर्मा
    भारत में धरती को माँ कहकर सम्बोधित करने एवं सुबह उठते ही सबसे पहले धरती माँ को प्रणाम करने की परम्परा रही हैं ।
    हरियाली धरती माँ का चीर है और पहाड़ों पर स्थित वृक्ष धरती माँ के सिर के बाल (केश) है । भरी सभा में दु:शासन द्वारा द्रोपदी के केश को पकड़कर घसीटने और फिर चीरहरण करने के फलस्वरूप महाभारत के भीषण युद्ध मेंहमारे देश का भारी विनाश हुआ था, जिससे हम अभी तक नहीं उबर पाये हैं । हम सबकी धरती माँ के हरियाली रूपी चीर का हरण करने से होने वाला महाभारत निश्चित ही हमारे लिये बहुत ही विनाशकारी एवं आत्मघाती सिद्ध होगा । 
     वर्ष २०१२ में भारत सरकार द्वारा जारी निर्देशों के अनुसार ५० प्रतिशत से कम वनक्षेत्र वाले प्रान्तों को विकास कार्योंा के लिये उपयोग में लाई जाने वाली वनभूमि के बदले वृक्षारोपण हेतु समतुल्य गैर वनभूमि उपलब्ध कराना अनिवार्य था । वर्ष २०१४ में सरकार ने उपरोक्त ५० प्रतिशत की सीमा को घटाकर ३३ प्रतिशत कर दिया । इससे निश्चित ही भारत में वनावरण का प्रतिशत घटने से यहाँ की जलवायु प्रतिकूल रूप से प्रभावित हो रही है । मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने पिछले वर्ष केन्द्र सरकार से ३३ प्रतिशत सीमा को घटाने का निवेदन था, अगर भारत सरकार द्वारा इसे मान्य कर लिया गया तो धरती माँ की हरी चुनरी और सिकुड़ जायेगी ।
    नर्मदा नदी पर बने वृहद सरदार सरोवर बाँध के फलस्वरूप गुजरात की धरती माता की प्यास बुझने से वहाँकृषि पैदावार भी बढ़ी है और लोगों की प्यास भी बुझ रही    है । नर्मदा नदी का अस्तित्व पूर्णत: मध्यप्रदेश के वनोंके अस्तित्व पर ही निर्भर है । जैसे-जैसे मध्यप्रदेश के जंगल घटते जायेंगे वैसे-वैसे नर्मदा नदी की जलधारा भी सिकुड़ती जायेगी और जिस दिन मध्यप्रदेश के अधिकांश जगल नष्ट हो जायेंगे उस दिन यह बारहमासी नदी केवल बरसाती नदी ही रह जायेगी ।
    इससे न केवल नर्मदा नदी पर बने बांधों से पन-बिजली का उत्पादन बंद हो जायेगा बल्कि मध्यप्रदेश और गुजरात में कृषि उत्पादन भी प्रतिकूल रूप से प्रभावित होगा और नर्मदा जल पर आश्रित लोग पानी के अभाव में प्यासे मरने लगेंगे । उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश में किसी समय बारहमासी रही शिप्रा और ताप्ती जैसी नदियाँ अब वनों के विनाश के कारण सूखकर केवल बरसाती नदियाँ ही रह गई है ।
    हमारे चारों तरफ कई गंजे पुरूष तो देखे जा सकते हैं लेकिन कोई स्त्री गंजी नजर नहीं आती क्योंकि स्त्री के सिर को ढंकने के लिये ईश्वर ने स्त्री को गंजा नहीं बनाया । इसी तरह धरती माँ भी गंजी नहीं होनी चाहिये अर्थात् उसके केश रूपीवृक्ष अर्थात् जंगल बने रहने चाहिये, हमें ईश्वर की यही आज्ञा   है । नहाते समय किसी गंजी व्यक्ति को सिर पोंछने के लिये तौलिये की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि उसके सिर पर पानी नहीं टिकता ही नहीं लेकिन स्त्री को अपने बाल सुखाने के लिये समय लगता है क्योंकि उनमे पानी रूक जाता है ।
    अगर धरती माँ के सिर पर वृक्षरूपी केश रहेंगे तो इनके कारण रूकने वाला पानी धरती मेंशनै: शनै: रिस-रिस कर जायेगा जिसका कुछ अंश हमारे कुंआें के जलस्तर को ऊंचा करेगा और कुछ अंश छोटे-बड़े झरने बनकर नदियों और तालाबों में जाकर उन्हें जिन्दा रखेगा । इसीलिये धरती माँ के सिर के बाल और उसकी हरी चुनरी का बने रहना हमारे अस्तित्व के लिये अति आवश्यक है क्योंकि हमारे शरीर के पाँच तत्वों में से जल और वायु (आक्सीजन) तो हमें वृक्षों के कारण ही प्राप्त् हो रही है । भोजन के बिना कुछ दिनों तक तो हम जीवित रह सकते हैं लेकिन ऑक्सीजन के अभाव में तो जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती, जिस कारण हम तुरन्त ही अकाल मृत्यु को प्राप्त् हो जायेंगे और पानी के बिना भी हम जल्द ही मौत के मुँह में समा जायेंगे ।
    ऐसी स्थिति में विकास के नाम पर विभिन्न परियोजनाआें के लिये वनभूमि देने हेतु जंगलों का नाश करना, विकास न होकर हमें मौत के मुँह में धकेलना ही होगा । मध्यप्रदेश में अगर मुख्यमंत्री की राय को स्वीकार कर लिया जाता है तो इसके फलस्वरूप सर्वप्रथम मध्यप्रदेश की जनता के प्रभावित होने के पश्चात् दूसरा नम्बर गुजरात की जनता का ही आयेगा । इसके अतिरिक्त मध्यप्रदेश के पड़ौसी राज्यों यथा - राजस्थान, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ के लोग भी प्रतिकूल रूप से प्रभावित होंगे । अभी तक तो भारत एवं विश्व में लोग यही मान रहे है कि हमारे यहां धरती और वन को देवता मानकर पूजा जाता है । इस प्रकार वन और धरती दोनों ही पूजनीय है ।

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