गुरुवार, 16 फ़रवरी 2017

जनजीवन 
श्रम से दूर होती जीवन शैली और नए रोग 
डॉ. रामप्रताप गुप्त 

महात्मा गांधी ने अपनी पुस्तक हिन्द स्वराज में लिखा है कि हमारे पूर्वजों का जीवन यंत्रों से दूर और शारीरिक श्रम पर आधारित    था । 
हमारे किसान हजारों वर्षोंा से बैलों की सहायता से ऐसी हल से खेती करते गए, जिससे उनके पूर्वज करते थे । वे उन्हींझोपड़ों में रहते रहे, जिनमें उनके पूर्वज रहते थे । महिलाएं उसी तरह आटा पीसती हीं, दही बिलौती रहीं जैसे उनके पूर्वज करते  थे । ऐसा नहींथा कि वे यंत्रों का उपयोग करते नहीं थे, या बनाने में असमर्थ थे । वे यंत्रों का उपयोग केवल उन्हीं कामों में करते थे जिन्हें वे अपनी शारीरिक शक्ति से करने में असमर्थ होते थे । वे जानते थे कि शारीरिक श्रम से बचने के लिए यंत्र बनाए तो एक दुष्चक्र मेंफंस    जाएंगे । शारीरिक श्रम पर आधारित जीवन शैली के कारण वे संक्रामक रोगों को छोड़कर वर्तमान में होने वाले अन्य प्रकार के रोगों से बचे रहते थे । 
उस काल में जीविका, आवास आदि सब शारीरिक श्रम को प्रोत्साहित करते थे । मध्यकाल में जब पुरानी दिल्ली को बसाया था, तो उसकी योजना इस तरह से बनाई गई थी कि निवासी श्रम करने को प्रेरित हों । शहर के केन्द्र में चांदनी-चौक में बाजार की सुविधाएं उपलब्ध कराई गई थी और उसके चारों ओर बस्तियां थी । लोग आसानी से चलकर बाजार जा सकते थे । सारी व्यवस्था वाहन के बिना पैदल चलकर अपनी आवश्यकताआें की पूर्ति करने की दिशा में प्रेरित करती थी । 
औद्योगिक क्रांति के साथ आए परिवर्तनोंने हमें शारीरिक श्रम से दूर कर यंत्रों का गुलाम बना  दिया ।  कम्पनियां लोगों को श्रम से विरत कर यंत्रों का सहारा लेने की दिशा में प्रेरित करने के लिए नए-नए उपकरण बनाने लगी । विक्रय को प्रेात्साहन देने के लिए विज्ञापनों का सहारा लिया गया । आम जनता ने भी उन्हें प्रगति और विकास का पर्याय मान कर गले लगा लिया । 
फलस्वरूप प्राकृतिक संसाधनों के अतिदोहन से उनके हमेशा के लिउ समाप्त् हो जाने का खतरा भी उत्पन्न हो रहा है । बढ़ते उपभोग के इस पहलू की चर्चा फिर कभी होगी, वर्तमान में तो हम श्रम से विरत जीवन शैली के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों की चर्चा तक सीमित रहेंगे । 
एक ओर तो वर्तमान यंत्र आश्रित जीवन शैली हमें श्रम से विरत करती है, जिससे हमारी ऊर्जा की आवश्यकता कम हो जाती है, वहीं दूसरी ओर अत्यधिक वसा, चीनी, मैदा आदि से बनी स्वादिष्ट वस्तुआें का उपभोग बढ़ता जा रहा है जिससे शरीर को आवश्यकता से अधिक ऊर्जा उपलब्ध हो जाती है । इस तरह हमारे शरीर की ऊर्जा की मांग और आपूर्ति में असंतुलन पैदा हो जाता    है । अतिरिक्त ऊर्जा व्यक्ति को मोटापे का शिकार बनाती है । गांधीजी की यह भविष्यवाणी सत्य सिद्ध हो रही है कि हम शारीरिक श्रम से बचाने वाले यंत्रों के गुलाम हो जाएंगे । 
वर्ष २०१५ के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार प्रति व्यक्ति उच्च् आय वाले राज्यों में मोटापे के शिकार लोगों का प्रतिशत अधिक है । महाराष्ट्र में पुरूषों और महिलाआें में मोटे व्यक्तियों का प्रतिशत क्रमश: २३.८ और २३.४, तमिलनाडु में २८.२ और ३०.९, आंध्र में ३३.५ और ३३.२ है । दूसरी ओर अल्प आय वाले राज्यों जैसे बिहार में यह प्रतिशत क्रमश: ६.३ और ४.६ प्रतिशत, मध्य प्रदेश में १०.९ और १३.६ प्रतिशत और पश्चिम बंगाल १४.२ और १९.९ है । इस तरह राज्यों की आय के स्तर और मोटापे के प्रतिशत मेंस्पष्ट सम्बंध दिखाई देता है । 
आय के स्तर और मोटापे मेंसीधे सम्बंध के कारण आय वृद्धि के साथ-साथ मोटापा जनित बीमारियों के शिकार लोगों का प्रतिशत भी बढ़ता जाता है । मोटापे के कारण होने वाली बीमारियों में मधुमेह, उच्च् रक्तचाप, हृदय रोग आदि प्रमुख हैं । उदाहरण के लिए मधुमेह के शिकार पुरूषोंऔर महिलाआें का प्रतिशत महाराष्ट्र में क्रमश: ५.९ और ५, तमिलनाडु में ९.७ और ७.१ और आंध्र में ९.८ और ८.२ प्रतिशत है । वहीं बिहार में यह ६.७ और ४.२, मध्य प्रदेश में ६.७ और ५.१ और पश्चिम बंगाल में ११.४ और ७.४ प्रतिशत है । 
इसी तरह उच्च् रक्त चाप के शिकार पुरूषों और महिलाआें का प्रतिशत महाराष्ट्र में ११.५ और ७.१, तमिलनाडु में ११.५ और ६.२ तथा आंध्र में ११ एवं ७.६ प्रतिशत है । दूसरी ओर अल्प आय वाले राज्यों में उच्च् रक्त चाप के शिकार पुरूषों और महिलाआें का प्रतिशत बिहार में ७.५ और ४.४, मध्य प्रदेश में ८.२ और ६.३ तथा पश्चिम बंगाल में ९.९ और ७.८ प्रतिशत है । 
मोटापा या आवश्यकता से अधिक वजन का अर्थ है, बीएमआई २५ किलोग्राम प्रति वर्ग मीटर से अधिक  होना । बीएमआई ज्ञात करने के लिए निम्न सूत्र का उपयोग किया जाता है -बीएमआई वजन = (कि.ग्रा. में)/कद (मीटर में) । 
चिंता की बात यह भी है कि शहरी और उच्च् आय वाले लोगों की वसा एवं चीनी प्रधान खानपान की आदतें ग्रामीण इलाकों में फैलती जा रही है । पूर्व में ग्रामीण क्षेत्रों में मधुमेह और हृदय रोगियों का प्रतिशत शहरवासियों की तुलना में बहुत कम होता था । चिकित्सकों का कथन है कि दिनों-दिन ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले इनके रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है । के.ई.एम. अस्पताल के डीन डॉ. अविनाश सुपे का कथन है कि पूर्व में जहां ९५ प्रतिशत बाल रोगी दस्त के शिकार होते थे, अब उनमेंकई तरह के मोटापे के शिकार और कुछ मामलों में बच्चें को होने वाली मधुमेह के शिकार भी आ रहे हैं । 
प्रसिद्ध जर्नल लेंसेट के अनुसार भारत में कुल बीमारियों में जीवन शैली जनित बीमारियों का हिस्सा ५२ प्रतिशत और कुलमौतों में ६० प्रतिशत हो गया । भारत में पहली बार हृदयाघात के शिकार लोगों की औसत आयु ५० वर्ष है, यह आयु विकसित राष्ट्रों की तुलना में १० वर्ष कम है । जीवन शैली के कारण होने वाली बीमारियों के प्रतिशत में वृद्धि के पीछे शहरों की अनियोजित बसाहट भी है । 
वर्तमान में शहरों में यह आम बात हो गई है कि व्यक्ति के आवास, कार्यस्थल एवं बाजार एक-दूसरे से कई किलोमीटर दूर स्थित होते हैं जिसके चलते एक स्थान से दूसरे स्थान जाते समय वाहन की सुविधा एक अनिवार्य आवश्यकता हो गई    है । एक बार वाहन के आदी होने पर अब हम छोटी दूरी के लिए भी वाहन तलाशते हैं, पैदल चलना अब हमारे जीवन का गिरता अंश हो गया है । 
वर्तमान में हमारी पीढ़ी एक ओर तो नई जीवन शैली जनित नए-नए रोगों का शिकार हो रही है, वहीं जहां अन्य राष्ट्रों में संक्रामक बीमारियों से मुक्ति प्राप्त् की जा चुकी है, हम अब भी तपेदिक आदि के शिकर हो रहे हैं । हाल ही में प्रसारित विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार भारत में तपेदिक के रोगियों की संख्या सरकार के अनुमान की लगभग दुगुनी है । 
विश्व के विकसित राष्ट्र इस रोग से पूरी तरह मुक्त हो चुके हैं । साथ ही भारत में डेंगू, चिकनगुनिया आदि संक्रामक बीमारियां भी तेजी से फैल रही हैं । सन् २०१० एवं २०१५ की ५ वर्षीय अवधि में डेंगू के मामलों में ३.५ गुना और मृत्यु दर में दुगनी वृद्धि हुई है । इस तरह भारतीय लोग दोहरी मार झेल रहे है । 
सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाआें की अपर्याप्त्ता के चलते एवं निजी क्षेत्रों की मरीजों से येन केन प्रकारेण पैसा छीनने की प्रवृत्ति को देखते हुए इस स्थिति से निपटने और मोटापे से मुक्ति प्रदान करने की त्वरित आवश्यकता है । अनेक लोगों का व्यवसाय ही ऐसा होता है जिसमें शारीरिक श्रम की आवश्यकता नहीं होती । ऐसी स्थिति में हमें सुबह-शाम पैदल घूमने की आदत डालना    होगी । अगर हम तेज गति से चलते हैं तो आधा घण्टा अन्यथा एक घण्टा घूमना आवश्यक है, साथ ही अपने भोजन में वसा, चीनी आदि की मात्रा को भी कम करना होगा ताकि मोटापे की स्थिति पैदा ही न हो । आज जनता को श्रम रहित जीवन शैली के खतरों के प्रति जागरूक करने के व्यापक प्रचार-प्रसार की महती आवश्यकता है । 

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