गुरुवार, 16 फ़रवरी 2017

सामयिक
पराल प्रदूषण पर नियंत्रण
डॉ. ओ.पी. जोशी
कृषि के मशीनीकृत होने की एक बीमारी पराल या पुआल का जलाना भी है । साल में तीन फसल लेने का लालच न केवल मिट्टी की उर्वरता नष्ट कर रहा है । बल्कि पुआल जलाने जैसे गंभीर संकट भी पैदा कर रहा है । 
दीपावली के बाद दिल्ली में फैले खतरनाक प्रदूषण का एक कारण आसपास के राज्यों में पराल जलाना भी बताया गया था । धान की फसल काटने के बाद खेतों में जो डंठल या ठूंठ खड़े रह जाते हैं उन्हें पराल, पराली या पुआल कहते हैं । इसे जलाने पर पोषक पदार्थोकी हानि के साथ साथ प्रदूषण फैलता है एवं ग्रीनहाऊस गैसें भी पैदा होती हैं । देश में प्रतिवर्ष १४ करोड़ टन धान व २८ करोड़ टन अवशिष्ट पराल या पुआल के रूप में निकलता है । दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण के कारण न्यायालय ने इसके जलाने पर रोक लगायी है । यह रोक या प्रतिबंध कितना सफल होगा यह शंकास्पद है । 
परालों के जलाने से पैदा प्रदूषण की समस्या आधुनिक कृषि एवं तेज रफ्तार जिंदगी से भी जुड़ी हुई है । पुराने समय से जब परम्परागत विधियों से मानव श्रम लगाकर धान की कटाई की जाती थी तो बहुत ही छोटे २-३ इंच लंबे डं ल बचते थे । साथ ही किसान चरवाहों को भेड़ों सहित खेतों में चराई के लिए आने देते थे जिससे भेड़े छोटे छोटे डंठलों को खाकर खेतों को साफ कर देतीं    थीं । इस कार्य में थोड़ा ज्यादा समय लगता था परंतु यह एक    पारस्परिक लाभ की प्रदूषण रहित प्रक्रिया थी । 
वर्तमान में आधुनिक कृषि के तहत अब मशीनों से कटाई की जाती है जिससे एक फीट (१२ इंच) से ज्यादा ऊंचे डंठल बचे रह जाते हैं । धान की कटाई के बाद लगभग एक माह के अंदर ही किसानों को रबी फसल की बुआई करना होती है   अत: डंठल पराल जलाना उन्हें   सबसे ज्यादा सुविधाजनक लगता   है । किसानों को प्रदूषण से ज्यादा चिंता अगली फसल बुआई की होती है ।
वैसे कृषि से जुड़े कुछ लोगों का मत है कि डंठल काटे बगैर ही उनके साथ गेहँू को बुआई की    जाए । गेहूँ की सिंचाई से जब पराल सड़ेगे तो पोषक पदार्थ मिट्टी में पहुंचकर गेहँू की फसल को लाभ पहंुचाएगे । इस संदर्भ में किसानों का अनुभव है कि खड़े डंठलों से बुआई तथा खेतों के अन्य कार्यों में  दिक्कतें आती हैं । आधुनिक कृषि से जुड़े व्यापारी बताते हैं कि ट्रेक्टर के साथ एक ऐसी मशीन लगायी जा सकती है जो डं ठल काटती है उन्हें एकत्र करती है एवं गेहँू की बुआई भी कर देती है ।
इस मशीन का उपयोग यदि किसानों को व्यावहारिक लगे तो सरकार इसको प्रोत्सहित करे । इसमें एक समस्या यह आयेगी कि किसान एकत्र किए डंठलों या पराल का क्या करें ? यह भी संभव है कि कुछ समय तक रखने के बाद किसान मौका देखकर उन्हें जला दें । इन स्थितियों में पराल का कोई लाभदायक उपयोग रखा जाना ही समस्या से निदान दिला सकता है। कई उपायों पर प्रारम्भिक स्तर पर कार्य भी हुए हैं । पंजाब में ही एक पायलट प्रोजेक्ट के तहत परालांे का उपयोेग ऊर्जा उत्पादन में किया गया है । देश में हरित क्रांति के जनक डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन ने धान के डंठल /ठूंठ का उपयोग पशुचारा, भूसा, कार्डबोर्ड एवं कागज आदि बनाने में करने का सुझाव दिया है । इस हेतु उन्होंने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर अनुरोध भी किया है । 
पिछले दिनों पंजाब में भटिंडा में आयोजित एक जनसभा में प्रधानमंत्री ने भी किसानों से अनुरोध किया है कि वे पराली जलाये नहीं । यह मिट्टी के लिए अच्छी खाद है। ज्यादातर विशेषज्ञों का मत है कि पराल का उपयोग पशुचारा एवं भूसा बनाने में किया जाना चाहिये क्योंकि बढ़ती जनसंख्या के दबाव से चरागाह कम हो रहे हैं ।अच्छी गुणवता का पशुचारा या भूसा बनने पर दूध  उत्पादन बढ़ाकर लाभ कमाया जा सकता है। इससे पराल एक लाभकारी स्त्रोत हो जाएगा । 
इस संदर्भ में सबसे बड़ी समस्या यह है कि धान के डंठल व सूखी पत्तियों में ३० प्रतिशत के लगभग सिलीका होता है जो पशुओं की पाचन शक्ति को कम करता    है । साथ ही थोड़ी मात्रा में पाया जाने वाला लिग्निम भी पाचन में गड़बड़ी करता है। किसी सस्ती तकनीक से सिलीवा हटाने के बाद ही पशुचारा बनाना लाभकारी हो सकता है । महाराष्ट्र में धान की पुआल के साथ यूरिया एवं शीरा मिलाकर उपयोग की विधि बनायी गयी है । 
दिल्ली के जे.एन. यू. के पर्यावरण विज्ञान के छात्रों ने फसल अवशेषों से बायोचार बनाया है जो जल को साफ करने के साथ साथ भूमि की उर्वरा शक्ति भी बढ़ाता है। इस समस्या के संदर्भ में कुछ वैज्ञानिकोंतथा विशेषज्ञों का सुझाव है कि जुगाली करने वाले पशुओं के आमाशय (स्टमक) में पचाने हेतु चार अवस्थाएं होती हैं । पशुओं में बकरे बकरियों को काफी योग्य पाया गया है क्योंकि इसके आमाशय में पचाने की क्षमता ज्यादा होती है । अत: इसके लिए पराल से बनाया चारा उपयोगी हो सकता है । 
बकरे बकरियों के संदर्भ कई अन्य महत्वपूर्ण बाते भी हैं । जिनसे कुछ इस प्रकार हैं जैस इनकी संख्या अन्य पशुओं को तुलना में ज्यादा तेजी से बढ़ती है, इनका दूध मंहगा बिकता है तथा इनकी कीमत भी अन्य पशुओं की तुलना में ८-१० गुना कम होती है । इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि दिल्ली में पराल से पैदा प्रदूषण में बकरे बकरियां कमी ला सकते हैं ।
जब तक पराल/पराली या पुआल का कोई लाभदायक उपयोग नहीं निकलता तब तक किसानों को इसे जलाने से रोकना संभव नहीं  होगा । लाभदायक उपयोग में ज्यादा सम्भावनाएं पशुचारे एवं भूसे में ही दिखायी देती हैं। इस विज्ञान व तकनीकी के युग में ऐसा कर पाना संभव भी है ।

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