शुक्रवार, 17 मार्च 2017

ज्ञान-विज्ञान
हिंद महासागर में एक जलमग्न महाद्वीप

    हाल के अनुसंधान व विश्लेषण से पता चला है कि हिंद महासागर मेंएक महाद्वीप जलमग्न हो गया था और आज यह हिंद महासागर की तलहटी में भारत और मैडागास्कर के बीच है । इस जलमग्न महाद्वीप की खोज दक्षिण अफ्रीका के विटवाटर्सरैंड विश्वविद्यालय विश्वविद्यालय के लुइस आश्वाल और उनके साथियोंने की  है ।
    ऐसे महाद्वीप की उपस्थिति का पहला संकेत यह था कि हिंद महासागर के कुछ हिस्सों में गुरूत्वाकर्षण असामान्य रूप से अधिक है । इसका मतलब है कि इस क्षेत्र में भूपर्पटी ज्यादा मोटी है । इसकी व्याख्या के लिए  एक परिकल्पना यह प्रस्तुत की गई थी कि यहां कोई विशाल भूखंड समुद्र के अंदर समाया हुआ है । 
     अत्याधिक गुरूत्वाकर्षण वाला एक स्थान मॉरिशस है । इसके आधार पर आश्वाल ने २०१३ में प्रस्ताव दिया था कि संभवत: मॉरिशस एक जलमग्न महाद्वीप के ऊपर विराजमान है ।
    हालांकि मॉरिशस द्वीप मात्र ८० लाख साल पुराना है किंतु इसके समुद्र तटोंपर कुछ जिरकॉन क्रिस्टल मिलते हैं जिनकी उम्र लगभग २ अरब साल है । ऐसा प्रतीत होता है कि यहां ज्वालामुखियों के विस्फोट के साथ प्राचीन महाद्वीप के टुकड़े जमीन पर आ गए होंगे । यही कारण है कि यहां जिरकॉन क्रिस्टल के इतने प्राचीन नमूने मिले हैं । इस जलमग्न महाद्वीप को आश्वाल की टीम ने मॉरिशिया नाम दिया है ।
    उनके मुताबिक करीब साढ़े आठ करोड़ वर्ष पूर्व तक मॉरिशिया एक छोटा-सा महाद्वीप था (लगभग वर्तमान मैडागास्कर के बराबर) । यह भारत और मैडागास्कर के बीच स्थित था । उस समय भारत और मैडागास्कर एक-दूसरे के ज्यादा समीप थे । कालातंर में ये दूर हटने लगे और मॉरिशिया भूखंड पर तनाव पैदा हुआ जिसकी वजह से वह बिखरने लगा । यही टुकड़े हिंद महासागर की गहराई में बैठे हैं और असामान्य गुरूत्वाकर्षण पैदा कर रहे हैं ।
    अब इस क्षेत्र में जलमग्न महाद्वीप के और भी अवशेष मिले    हैं । इस बात के प्रमाण हैं कि हिंद महासागर के कई अन्य द्वीप भी मॉरिशिया के अवशेषोंपर टिके हैं - इनमें कार्गाडेस केराजोस, लक्षद्वीप और चागोस द्वाीप शामिल हैं ।

कीटनाशक के असर से मधुमेह का खतरा
    एक अध्ययन में पता चला है कि ऑर्गेनोफॉस्फेट आधारित कीटनाशकों के उपयोग से मधुमेह होने का जोखिम बढ़ जाता है । ऑर्गेनोफॉस्फेट और मधुमेह के बीच कड़ी का अंदेशा कई रोग-प्रसार वैज्ञानिक
अध्ययनों से किया गया था । अब मदुरै कामराज
विश्वविद्यालय के जी. वेलमुरूगन और उनके साथियोंद्वारा किए प्रयोगों ने इस कड़ी को पुष्ट किया है ।
     ऑर्गेनोफॉस्फेट समूह के कीटनाशकों में पैराथियॉन, मैलाथियॉन वगैरह से तो सभी परिचित हैं । यह भी जानी-मानी बात है कि इनसे लगातार संपर्क से कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं होती     है ।  
     चूहों पर किए गए प्रयोगों में देखा गया कि १८० दिनों तक ऑर्गेनोफॉस्फेट की खुराक देने के बाद उनके खून में ग्लूकोज में उपस्थित
बैक्टीरिया ने कीटनाशक को लघु-श्रृंखला वसा अम्लों में विघटित कर दिया । इनमें एसीटिक अम्ल प्रमुख था । इसी की वजह से रक्त शर्कराका स्तर बढ़ा और ग्लूकोज असिहष्णुता भी पैदा  हुई ।
    जैव वैज्ञानिकों ने ऑर्गेनोफॉस्फेट के संपर्क मेंआए चूहों की आंतों के बैक्टीरिया के संपूर्ण जीनोम का विश्लेषण किया तो पाया कि उनमेंऑर्गेनोफॉस्फेट का विघटन करने वाले जीन अति-सक्रिय थे ।
     भारत के गांवों में जो लोग लगातार कीटनाशकों के संपर्क में आते हैं उनमें मधुमेह का प्रकोप अन्य लोगों की अपेक्षा तीन गुना ज्यादा होता     है । कीटनाशक-प्रेरित मधुमेह में आंतों के बैक्टीरिया की भूमिका इस बात से जाहिर होती है कि मधुमेह पीड़ित व्यक्तियों के मल में एसिटेट की मात्रा सामान्य से ज्यादा होती है ।

समंदर के पेंदे में रोशनी और सूक्ष्मजीव
    वैज्ञानिकों ने गहरे समुद्र के पेंदेमें मौजूद लाल मिट्टी में अनोखे सूक्ष्मजीव खोजने का दावा किया    है । ये सूक्ष्मजीव प्रकाश संश्लेषण की क्रियाद्वारा कार्बन डाईऑक्साइड और पानी से कार्बोहाइड्रेट का उत्पादन करते   हैं । सवाल यह है कि प्रकाश संश्लेषण के लिए प्रकाश आवश्यक होता है, तो इन सूक्ष्मजीवों को वहां गहराई में प्रकाश कैसे मिलता है ।
    गहरे समुद्र की लाल मिट्टी लौह ऑक्साइड से बनी होती है और इसमें सूक्ष्मजीवी सक्रियता देखी गई है । समुद्र की गहराई मेंहाइड्रो-थर्मल सुराख होते हैं जिनमें रासायनिक क्रियाआें से गर्मी पैदा होती रहती है । ये सूक्ष्मजीव इसी गर्मी में फलते-फूलते हैं । सूक्ष्मजीवों की कई प्रजातियां इन स्थानों पर पाई जाती हैं, मगर इस प्राकृतवास की भलीभांति खोजबीन नहीं की गई है ।
     लाल मिट्टी में सूक्ष्मजीवों की पहचान का यह काम महाराष्ट्र एसोसिएशन फॉर कल्टीवेशन ऑफ साइन्स के अगरकर शोध संस्थान, राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान, इसरो तथा भौतिकी अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों ने संयुक्त रूप से किया    है । इन्होंने गहरे समुद्र की लाल मिट्टी में पाए गए विविध सूक्ष्मजीवों के जीन्स का क्षार अनुक्रम पता किया   है । इस समृद्ध सूक्ष्मजीव संसार में खास तौर से छड़ आकार के बैक्टीरिया पाए गए हैं । ये वहां मौजूद मीथेन-उत्पादक बैक्टीरिया की प्रक्रियाआें से उत्पन्न रोशनी का उपयोग प्रकाश संश्लेषण हेतु करते  हैं ।
    सूक्ष्मजीव हमें यह समझने में मदद कर सकते हैं कि लौह धातु ने इनके विकास को कैसे दिशा दी   है । इस शोध का एक लाभ यह भी है कि हमेंयह निर्णय करने में मदद मिलेगी की मंगल ग्रह पर कहां कदम रखने से जीवन मिलने की संभावना ज्यादा है ।
मलेरिया अपना प्रसार कैसे बढ़ाता है ?
    परजीवी और उसके मेजबान के सम्बंध काफी जटिल होते हैं । परजीवी यानी वह जीव जो किसी अन्य जीव से पोषण प्राप्त् करता है और मेजबान वह जीव होता है जो परजीवी को भोजन उपलब्ध कराता है । कई परजीवी रोग पैदा करते हैं । ऐसा देखा गया है कि परजीवी अपने मेजबान के शरीर में या उसके व्यवहार में ऐसे परिवर्तन करता है ताकि स्थितियां परजीवी के अनुकूल हो जाएं । 
     मलेरिया रोग एक परजीवी प्लज्मोडियम की वजह से होता है । प्लज्मोडियम की कई प्रजातियां हैं । जैसे
प्लज्मोडियम वाइवैक्स, प्लज्मोडियम फाल्सीपैरम वगैरह । यह परजीवी मनुष्य के शरीर में मच्छर के काटने से पहुंचता है । मनुष्य के शरीर मेंपहुंचकर यह अपने जीवन चक्र का एक हिस्सा पूरा करता है ।

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