रविवार, 16 अप्रैल 2017

ज्ञान-विज्ञान
मौसम की विकरालता शिखर को छू रही है
    वैश्विक मौसम विज्ञान संगठन का मत है कि जलवायु व मौसम की अति परिस्थितियां २०१७ में भी जारी है । वर्ष २०१६ में विश्व का औसत तापमान औघोगिकरण से पूर्व के समय की अपेक्षा १.१ डिग्री सेल्सियस अधिक रहा था और इसने २०१५ के रिकॉर्ड को तोड़ दिया  था । 
     पिछले वर्ष समुद्र असामान्य रूप से गर्म रहे थे । इसके कारण बर्फ पिघलने की गति में तेजी देखी गई ।  आर्कटिक सागर में बर्फ लगभग पूरे साल औसत से कम रहा । इसके साथ ही दक्षिणी व पूर्वी अफ्रीका तथा मध्य अमेरिका में भीषण सूखे की स्थिति बनी रही । ऐसी ही इन्तहाई परिस्थितियां २०१७ में जारी हैं आर्कटिक क्षेत्र में जाड़े के दिनों में वहां के लिहाज से तीन बार ग्रीष्म लहर चली है । आर्कटिक में हुए परिवर्तनों का असर अन्य स्थानों के मौसम पर भी हुआ है । कनाडा व यूएस में मौसम गर्म रहा जबकि अरब प्रायद्वीप और उत्तरी अफ्रीका में असामान्य रूप से ठंड के हालात बने रहे । इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया के कुछ हिस्सों में जनवरी व फरवरी में ग्रीष्म लहर चलती   रही ।
    और तो और २०१६ के एल नीनो का असर समाप्त् होने तथा २०१७ में एल नीनो की अनुपस्थिति के बावजूद मौसम में अजीबोगरीब परिवर्तन देखे जा रहे हैं । एल नीनो प्रशांत महासागर की एक स्थिति है जिसकी वजह से विश्व का तापमान बढ़ता है । २०१६ में एल नीनो की वजह से तापमान में वृद्धि ०.१ से ०.२ डिग्री सेल्सियस के बीच हुई थी । विश्व मौसम विज्ञान संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक २०१६ अब तक के रिकॉर्ड आंकड़ों के हिसाब से सबसे गर्म वर्ष रहा था - यह वर्ष औघोगिकरण से पूर्व की तुलना में पूरे १.१ डिग्री सेल्सियस गर्म रहा ।
    धरती के वायुमण्डल में कार्बन डाईऑक्साईड की मात्रा में वृद्धि जारी है और यह औसत तापमान की वृद्धि में योगदान दे रही है । इससे यह भी स्पष्ट है कि वर्तमान मौसम परिवर्तन के रूझानों के पीछे मुख्य रूप से मनुष्य के क्रियाकलापों की भूमिका है ।
    विश्व स्तर पर देंखे तो समुद्री बर्फ की मात्रा नवम्बर २०१६ में औसत से लगभग ४० लाख वर्ग किलोमीटर कम थी । जाड़ों के अंत में आर्कटिक सागर पर बर्फ १९७९ के बाद से सबसे कम स्तर पर रहा । नवम्बर २०१४ के मुकाबले फरवरी २०१६ में समुद्र तल १५ मिली मीटर ऊपर रहा । यह पिछले वर्षो में देखी गई औसत वृद्धि (३ से ३.५ मि.मी.) से बहुत ज्यादा है । समुद्रों का पानी गर्म बना हुआ है जिसकी वजह से मूंगा सहित विभिन्न समुद्री जीव प्रभावित हो रहे हैं ।
    जहां एक ओर दक्षिण अफ्रीका में ओर अमेजन कछार तथा ब्राजील में सूखे की स्थिति रहीं वहीं चींन की यांगत्से नदी घाटी में भयानक बाढ़ का नजारा बना रहा ।
    कुल मिलाकर २०१७ में भी हमें इन्तहाई मौसम की घटनाएं देखने को मिल सकती है । विशेषज्ञों के मुताबिक अब हम एक ऐसे धरातल पर पहुंच गए है जिसके भूगोल का हमें तनिक भी अंदाज नहीं है ।
मक्का की उपज अधिक धूप के कारण बढ़ी है
    आम तौर पर मानकर चला जाता है कि पिछले तीन दशकोंमें संयुक्त राज्य अमेरिका में मक्का की उपज में जो वृद्धि हुई है वह नई कृषि तकनीकोंके कारण हुई है । इनमें बेहतर बीज तथा रासायनिक उर्वरक प्रमुख घटक रहे हैं । मगर ताजा अध्ययन से निष्कर्ष निकला है कि मक्का की उपज में वृद्धि का एक बड़ा कारण वहां धरती पर पड़ने वाली धूप की मात्रा में वृद्धि भी है ।
     गौरतलब है कि पौधे सूर्य के प्रकाश की ऊर्जा का उपयोग कार्बन डाईऑक्साइड और पानी से कार्बोहाइड्रेट बनाने में करते हैं । इस प्रक्रियाको प्रकाश संश्लेषण कहते    हैं । इस प्रक्रियाकी कार्य क्षमता कई कारकों के अलावा प्रकाश की मात्रा पर भी निर्भर होती है ।
    नेचर क्लाइमेट चेंज नामक शोध पत्रिका में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक १९८४ से २०१३ के बीच यूएस के मक्का उत्पादक क्षेत्र मेंउपज में वृद्धि का कम से कम २७ प्रतिशत हिस्सा प्रकाश कि मात्रा में वृद्धि के फलस्वरूप हुआ है । यह बात कई शोधकर्ता कहते आए हैं कि पश्चिमी देशों में कृषि उपज में वृद्धि का एक कारण यह रहा है कि वहां धरती तक पहंुचने वाली धूप में वृद्धि हुई है । धूप में वृद्धि का कारण यह बताते हैं कि १९८० के दशक से इन देशों में स्वच्छ हवा सम्बंधी कानून लागू किए गए थे जिसकी वजह से यहां की हवा में निलंबित कणों(एयरोसॉल) की मात्रा में कमी आई है । ऐसे निलंबित काण सूर्य के प्रकाश को सोखते हैं या छितरा देते हैं जिसकी वजह से जमीन पर पर्याप्त् प्रकाश नहीं पहुंच पाता ।
    इस उपज वृद्धि में एक समस्या भी छिपी है । जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के अनुमान लगाते समय यह माना जाता है कि जब तापमान बढ़ेगा तो कृषि उपज बढ़ेगी किंतु वह तो पहले ही बढ़ चुकी है । इसलिए शायद जलवायु परिवर्तन के विभिन्न मॉडल्स द्वारा उपज में जितनी वृद्धि के अनुमान लगाए जा रहे हैं वह वास्तव में नहीं होगी ।
मकड़ियां मनुष्यों से दुगना खाती हैं
    संयुक्त राष्ट्र संघ के खाद्य एवं कृषि संगठन का अनुमान है कि हम सारे मनुष्य मिलकर एक साल में ४० करोड़ टन मांस-मछली खाते  हैं । इसकी तुलना में दुनिया भर की मकड़ियां मिलकर एक साल में ८० करोड़ टन तक शिकार को मार डालती हैं । यह निष्कर्ष स्विटजरलैण्ड और स्वीडन के शोधकर्ताआें ने बेसल विश्वविद्यालय के मार्टिन नायफलर के नेतृत्व में निकाला है । 
     दुनिया भर में मकड़ियों की करीब ४५ हजार प्रजातियां हैं जिनका कुल वजन २.५ करोड़ टन के आसपास है । इन मकड़ियों की कुल खुराक दुनिया की सारी व्हेलोंकी कुल खुराक से भी ज्यादा है, जो प्रति वर्ष करीब ५० करोड़ टन खाद्य साम्रगी  का भक्षण करती है । मकड़ियों का मुख्य भोजन तो कीट (कीड़े-मकोड़े) हैं किंतु कभी-कभार ये मेंढ़कों, छिपकलियों, मछलियों और अन्य छोटे जंतुआें का शिकार करने से भी नहीं चूकतीं है । इनकी भोजन करने की क्षमता को देखते हुए शोधकर्ताआें का कहना है कि पृथ्वी पर कीटों का सफाया करने में इनकी भूमिका सर्वोपरि हैं । चीटियों और पक्षियों के साथ मिलकर ये धरती पर कीट आबादी को  सीमित रखने का महत्वपूर्ण काम करती है ।
    शोधकर्ताआें ने यह भी दर्शाया है कि मकड़ियां यह काम खेतों की बजाय जंगलों और घास के मैदानों में ज्यादा कुशलता से करती हैं क्योंकि हमारे खेतों का इतना सघन प्रबंधन होता है कि वहां का वातावरण मकड़ियों के लिए उपयुक्त नहीं रह जाता ।
    शोधकर्ताआें को उम्मीद है कि उनका यह अध्ययन और इसके निष्कर्ष थलीय खाद्य श्रृखंला में मकड़ियों की महत्वपूर्ण भूमिका के प्रति जागरूकता बढ़ाने में सफलता प्राप्त् करेगा ।

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