शुक्रवार, 16 फ़रवरी 2018

पर्यावरण परिक्रमा
बस्तर के कांगेर वैली में खुजली वाला जंगल
एक जंगल ऐसा भी है जहां भीतर गए तो फिर शरीर में इतनी खुजली होगी कि हाथों को आराम मिलना मुश्किल हो जाएगा । यहां बात हो रही है छत्तीसगढ़ में बस्तरके कांगेर वैली की । यहां लगभग २९९ हेक्टेयर में फैले सूरन (जमीकंद) के  जंगल भीतर जाने की लोग सोचते भी नही । वैसे तो सूरन एक लोकप्रिय सब्जी है, लेकिन यहां पाया जाने वाला सूरन भूलकर भी रसोई में नहीं पहंुचता । अत्यधिक खुजली पैदा करने के कारण लोग इस कंद का उपयोग सब्जी के रुप में नही वरन औषधि के रुप में करते है । जिला मुख्यालय से २० किलोमीटर दूर नानगूर-नेतानार चौक के पास जगदलपुर वन परिक्षेत्र अंतर्गत कांगेर आरक्षित वनखंड के कक्ष क्रमांक १७७३ और १७७४ में२९९ हेक्टेयर में यह जंगल फैला है यह सूरन के पौधोंसे भरा हुआ है । यहां के सूरन के पौधे एक से सात फीट तक उंचे है । इसके पत्ते और तने मे बारीक रोएं होते है जो शरीर के संपर्क मेंआते ही खुजली पैदा कर देते है । ग्राम बड़े बोदल के आशाराम ठाकु र कहते है कि सूरन वाले जंगल मेंदुश्मन को भी कभी न जाना पड़े । खुजली होने पर शरीर पर गोबर लगाकर रगड़ा जाता है । उन्होनें बताया कि मवेशियों को जख्म हो जाने पर यहां के सूरन का गूदा लगा देने से घाव जल्दी भर जाता है । औषधि के लिए जब कभी सूरन को निकालना होता है तो पूरे शरीर को कंबल से ढंककर जाते है ।
जिला आयुर्वेद चिकित्सालय के आयुर्वेद चिकित्सक केके शुक्ला बताते है कि सूरन को जमीकंद कहते है । इसका अंग्रेजी नाम वाइल्ड क्रोम है । सब्जी और औषधि के रुप मेंइसका उपयोग होता है । इसके कंद में प्रोटीन, वसा, कैल्शियम, फास्फोरस, लौह तत्व, क्षार व विटामिन ए और बी पाया जाता है । सूरन के सेवन से सांस रोग, खांसी, आमवात, बवासीर, आंतो में दर्द, कृमिरोग, यकृत क्रिया से जुड़ी परेशानियां दूर होती है, लेकिन चिकित्सक की सलाह से ही इसका उपयोग किया जाए । इस जंगल में पाए जाने वाले सूरन में ऑक्सेलेट एसिड पाया जाता है, इसी से खुजली होती है ।

पशु विविधता की रक्षा करने की जरुरत
नस्ल पंजीकरण अपने देश के इस अपार पशु आनुवंशिक संसाधन तथा उनमें संबंधित ज्ञान व सूचना का प्रलेखन करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है । जिससे कि हम अपने आनुवंशिक संसाधनों की एक इंवेंटरी तैयार कर सकें एवं अनुवंशिक सुधार, संरक्षण एवं सतत उपयोग हो सके । यह बात केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधा मोहनसिंह ने पिछले दिनों नई दिल्ली में आयोजित पशु नस्ल पंजीकरण प्रमाण-पत्र पुरस्कार वितरण समारोह में कही ।
उनहोनें कहा भारत में विविध उपयोग, जलवायु एवं पारिस्थितिकी क्षेत्र होने के कारण विभिन्न पशुधन प्रजातियों की बड़ी संख्या में नस्लें विकसित हुई है । देश में आज ५१२ मिलियन पशुधन व ७२९ मिलियन कुक्कुट है । मौजूदा समय में भारत में पशुआें और मुर्गियों की १६९ पंजीकृत नस्ले है, जिसमें पशुधन गाय की ४१, भैंस १३, भेड़ ४२, बकरी २८, घोड़ ७, सुअर ७, ऊं ट ९, गधे-याक की १-१ और कुक्कुट समुदाय में मुर्गी की १८ एवं बत्तक व गीज की १-१ नस्लें शामिल है । यह महत्वपूर्ण है कि पहली बार याक, बत्तक व गीज की नस्लें भी पंजीकृत की गई है । देश में मौजूदा पशुधन तथा मुर्गी की १२९ देशी नस्लें एक साथ पंजीकृत की है । इसके बाद कई और नई नस्लों का पंजीकरण हुआ है । इस प्रक्रिया के तहत यह संख्या बढ़कर कुल १६९ हो गई है ।
यह चिंता का विषय है कि भारत में आर्थिक असमानता बढ़ती जा रही है । गरीबी उन्मूलन पर काम करने वाली संस्था `ऑक्सफैम' की रिपोर्ट के मुताबिक, बीते साल भारत मेंजितनी संपत्ति पैदा हुई, उसका ७३ प्रतिशत हिस्सा देश के १ फीसदी धनाढ्य लोगों के हाथोंमें चला गया, जबकि नीचे के ६७ करोड़ भारतीयों को इस सपंत्ति के सिर्फ एक फीसदी यानी सौवें हिस्से से संतोष करना पड़ा है । २०१६ के इसी सर्वे के अनुसार,भारत के १ फीसदी सबसे अमीर लोगोंके पास देश की ५८ फीसदी संपत्ति थी । हमारे यहां इतनी तेज़ बढ़ती असमानता दुनिया के नामी अर्थशास्त्रियोंको भी चकित किए हुए है । पिछले दिनोंदावोस में वर्ल्ड इकॉनॉमिक फोरम का सलाना सम्मेलन शुरु होने के कुछ की घंटोंपहले जारी इस रिपोर्ट के अनुसार बाकी दुनिया का हाल भी अच्छा नही है ।
पिछले साल दुनिया की संपत्ति में हुए कुल इजाफे का ८२ प्रतिशत हिस्सा महज एक प्रतिशत अमीर आबादी के हाथ लगा, जबकि ३.७ अरब लोगों की संपत्ति में कोई वृद्धि नही हुई । ऑक्सफैम के सलाना सर्वेको लेकर दुनिया भर में उत्सुकता रहती है और इस पर वर्ल्ड इकॉनॉमिक फोरम के सम्मेलन मेंचर्चा भी होती है । आय असमानता की बढ़ती खाई और लैंगिक असमानता जैसे मुद्दे भी सम्मेलन के एजेंडा में शमिल रहते है । अगर यह सम्मेलन आर्थिक असमानता कम करने का कोई सूत्र ढंूढ सके तो इसे जरुर सार्थक समझा जाएगा, वरना सुपर-अमीरों की पिकनिक तो इसे कहा ही जाता है । 
आर्थिक असमानता के चलते आज हर जगह आम जनता में भारी आक्रोश है, जिसकी अभिव्यक्ति अराजकता और हिंसक प्रदर्शनोंमें हो रही है । अमीरों के पास संपत्ति इक्ट्ठा होने का सबसे बड़ा नुकसान यह है कि इस संपत्ति का बड़ा हिस्सा अनुत्पादक होकर अर्थतंत्र से बाहर हो जाता है । उनका उपभोग न तो उत्पादन में कोई योगदान करता है, न ही उससे विकास दर को गति मिल पाती है ।
करोड़ो की गाड़ियाँ, लाखों की घड़ियाँ और पेन, बिटकॉइन जैसी आभासी मुद्रा में लगा हुआ पैसा क्या किसी पिछड़े देश में कोई रोजगार पैदा करता है ? ऑक्सफैम की रिपोर्ट को एक अर्थ में उदारीकरण और भूमंडलीकरण पर की गई टिप्पणी भी माना जा सकता है। दुनिया में पूंजी के अबाध प्रवाह के बावजूद फायदा उन्हीं के हिस्से गया, जो पहले से समृद्ध थे । नई व्यवस्था मेंसरकारों का रोल घट जाने से राजनीति भी गरीबों के पक्ष में  नीतियां बनाने के बजाय उन्हें भरमाने पर केंद्रीत हो गई है । मनरेगा जैसी कुछ गरीब समर्थक नीतियां बनी भी तो उनका जोर कमजोर वर्ग को उत्पादन प्रक्रिया का हिस्सा बनाने की बजाय उन्हें किसी तरह जीवित रखने पर रहा । बहरहाल, असमानता के  मुद्दे को टालते जाने की भी सीमा है । कहीं ऐसा न हो कि दुनिया ऐसी अराजकता की शिकार हो जाए, जिससे उबरने की कल्पना भी मुश्किल लगने लगें ।

दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित देशों में है भारत
पर्यावरण के मामले मेंभारत की हालत बदतर है । ताजा ग्लोबल एन्वॉयर्नमेंट इंडेक्स में शामिल १८० देशों में भारत का स्थान १७७ वां है । दो साल पहले इस सूची में भारत १४१ वां स्थान पर था । उभरती अर्थ व्यवस्थाआें में शुमार चीन का स्थान १२० वां है ।
भारत की आबोहवा इतनी खराब है कि इसे दुनिया के सबसे खराब पांच देशों में रखा गया है । इन पांच देशों में बांग्लादेश, नेपाल, बुरुंडी और कांगो शामिल है । रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत और चीन आबादी के विकास के भारी दबाव से जूझ रहे है । विकास की गति तेज करने का सीधा असर पर्यावरण पर पड़ रहा है और वायु की गुणवत्ता गिर रही है । पड़ोसी पाकिस्तान भी इस सूची में ज्यादा ऊ पर नहीं है । १८० देशों की सूची में उसका स्थान १६९ वां है । इस लिहाज से पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में पर्यावरण के सुधार के लिए बड़े कदम उठाए जाने की जरुरत है । यह रिपोर्ट पिछले दिनों दावोस में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की शिखर बैठक के मौके पर सार्वजनिक की गई है । इस सूची मेंस्विट्जरलैंड लगातार सिरमौर बना हुआ है । स्वच्छता के लिहाज से फ्रांस, डेनमार्क, माल्टा और स्वीडन क्रमश: दूसरे,तीसरे चौथे और पांचवें स्थान पर हैं । रिपोर्ट में कहा गया है कि पर्यावरण की समस्या प्राणियों के स्वास्थ्य पर सीधा असर डाल रही है । हवा के साथ ही पानी और मिट्टी भी दूषित हो रही है । इसका असर जलीय जीवों, पक्षियों और खाद्यान्न की गुणवत्ता पर हो रहा है ।

भारत में लगातार बढ़ती आर्थिक असमानता
यह चिंता का विषय है कि भारत में आर्थिक असमानता बढ़ती जा रही है । गरीबी उन्मूलन पर काम करने वाली संस्था `ऑक्सफैम' की रिपोर्ट के मुताबिक, बीते साल भारत मेंजितनी संपत्ति पैदा हुई, उसका ७३ प्रतिशत हिस्सा देश के १ फीसदी धनाढ्य लोगों के हाथोंमें चला गया, जबकि नीचे के ६७ करोड़ भारतीयों को इस सपंत्ति के सिर्फ एक फीसदी यानी सौवें हिस्से से संतोष करना पड़ा है । २०१६ के इसी सर्वे के अनुसार,भारत के १ फीसदी सबसे अमीर लोगोंके पास देश की ५८ फीसदी संपत्ति थी । हमारे यहां इतनी तेज़ बढ़ती असमानता दुनिया के नामी अर्थशास्त्रियोंको भी चकित किए हुए है । पिछले दिनोंदावोस में वर्ल्ड इकॉनॉमिक फोरम का सलाना सम्मेलन शुरु होने के कुछ की घंटोंपहले जारी इस रिपोर्ट के अनुसार बाकी दुनिया का हाल भी अच्छा नही है ।
पिछले साल दुनिया की संपत्ति में हुए कुल इजाफे का ८२ प्रतिशत हिस्सा महज एक प्रतिशत अमीर आबादी के हाथ लगा, जबकि ३.७ अरब लोगों की संपत्ति में कोई वृद्धि नही हुई । ऑक्सफैम के सलाना सर्वेको लेकर दुनिया भर में उत्सुकता रहती है और इस पर वर्ल्ड इकॉनॉमिक फोरम के सम्मेलन मेंचर्चा भी होती है । आय असमानता की बढ़ती खाई और लैंगिक असमानता जैसे मुद्दे भी सम्मेलन के एजेंडा में शमिल रहते है । अगर यह सम्मेलन आर्थिक असमानता कम करने का कोई सूत्र ढंूढ सके तो इसे जरुर सार्थक समझा जाएगा, वरना सुपर-अमीरों की पिकनिक तो इसे कहा ही जाता है । 
आर्थिक असमानता के चलते आज हर जगह आम जनता में भारी आक्रोश है, जिसकी अभिव्यक्ति अराजकता और हिंसक प्रदर्शनोंमें हो रही है । अमीरों के पास संपत्ति इक्ट्ठा होने का सबसे बड़ा नुकसान यह है कि इस संपत्ति का बड़ा हिस्सा अनुत्पादक होकर अर्थतंत्र से बाहर हो जाता है । उनका उपभोग न तो उत्पादन में कोई योगदान करता है, न ही उससे विकास दर को गति मिल पाती है ।
करोड़ो की गाड़ियाँ, लाखों की घड़ियाँ और पेन, बिटकॉइन जैसी आभासी मुद्रा में लगा हुआ पैसा क्या किसी पिछड़े देश में कोई रोजगार पैदा करता है ? ऑक्सफैम की रिपोर्ट को एक अर्थ में उदारीकरण और भूमंडलीकरण पर की गई टिप्पणी भी माना जा सकता है। दुनिया में पूंजी के अबाध प्रवाह के बावजूद फायदा उन्हीं के हिस्से गया, जो पहले से समृद्ध थे । नई व्यवस्था मेंसरकारों का रोल घट जाने से राजनीति भी गरीबों के पक्ष में  नीतियां बनाने के बजाय उन्हें भरमाने पर केंद्रीत हो गई है । मनरेगा जैसी कुछ गरीब समर्थक नीतियां बनी भी तो उनका जोर कमजोर वर्ग को उत्पादन प्रक्रिया का हिस्सा बनाने की बजाय उन्हें किसी तरह जीवित रखने पर रहा । बहरहाल, असमानता के  मुद्दे को टालते जाने की भी सीमा है । कहीं ऐसा न हो कि दुनिया ऐसी अराजकता की शिकार हो जाए, जिससे उबरने की कल्पना भी मुश्किल लगने लगें ।

वैज्ञानिकों ने दिखाया कि ९ हजार साल पहले लोग कैसे दिखते थे
वैज्ञानिकोंने पहली बार दुनिया को ये दिखाया है कि ९ हजार साल पहले, करीब ७ हजार ईसा पूर्व में लोग कैसेदिखते थे । एथेंस के वैज्ञानिको ने  हू-ब-हू वैसी तस्वीर तैयार कर दी है, जैसे ७ हमार बीसी के लोग दिखते थे । उन्होने ३-डी प्रिटिंग की मदद से १५-१८ साल की एक युवती की तस्वीर बनाई । युवती को नाम दिया - डॉन, मतलब नई सुबह । इसका कारण उन्होनें बताया कि - ७ हजार बीसी का समय भी मानव सभ्यता के इतिहास की नई सुबह जैसा था । वैज्ञानिकोंको १९९३ में ग्रीस की ट्रियोपेट्रा गुफा से ये कंकालमिला था । शोध में पता चला कि ये कंकाल ९ हजार साल पुराना है । इसके बाद यूनिवर्सिटी ऑफ एथेंस के वैज्ञानिकोंने इस कंकाल की मदद से उस जमाने के लोगों के लुक को रिवाइव करने का फैसला किया । कंकाल का सीटी-स्कैन किया गया । इस सीटी-स्कैन की ३-डी प्रिंटिंग तैयार की गई । इस ३-डी इमेज को अध्ययन करने पर पता चल गया के ये कंकाल १५-१८ साल की एक युवती का रहा होगा । हडि्डयोंऔर दांत के आकार की मदद से युवती की कद-काठी का भी अंदाला लग गया । फिर इस ३-डी इमेज एथेंस के एक्रोपोलिस म्यूजियम में रखी गई है । इस युवती का जबड़ा भारी, माथा चौड़ा और गुस्सैल चेहरा लग रहा है ।

दो तरह के इंर्धन से चलने वाले दुपहिया वाहन जल्द
मोटरसाइकिल बनाने वाली दो प्रमुख कंपनियोंके जल्द ही भारतीय बाजार मेंबिजली और दो तरह के इंर्धन से चलने वाली मोटरसाइकिले उतारने की उम्मीद है । इन वाहनों के इंजन को पेट्रोल या एथेनॉल दोनोंसे चलाया जा सकेगा । केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने पिछले दिनों यह जानकारी दी । श्री गडकरी देश में बिजली के वाहनों के साथ-साथ एथेनॉल जैसे वैकल्पिक इंर्धन से चलाए जाने में सक्षम वाहनों को प्रोत्साहन देने पर काम कर रहे है । इसके लिए उन्होने एथेनॉल के उत्पादन को बढ़ाने पर भी जोर दिया है, ताकि एथेनॉल आधारित परिवहन को बढ़ावा दिया जा सके ।
उन्होनें कहा कि इस माह के अंत तक दुपहिया वाहन बनाने वाली दो कंपनियोंने बिजली की मोटरसाइकिल और दो तरह के इंर्धन से चलने में सक्षम मोटर साइकिल बाजार में उतारने का वादा किया है ।   ***

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